Thursday, January 22, 2009

स्लम-डॉग मिलिनियर

हालाकि स्लम डॉग मिलेनिअर मैंने देखी नहीं ,परन्तु जब से इसे गोल्डन ग्लोब अवार्ड मिला है और यह फिल्म अखबारों की सुर्खियों मै आई तो मेरा ध्यान इस फिल्म की और गया !परन्तु फिल्मो मै मेरी बहुत अधिक रूचि न होने के कारण मैंने इसमें विशेष ध्यान नहीं दिया !लेकिन जब इस फिल्म ने विवाद का रूप लिया तो बरबस ही मेरा ध्यान इस फिल्म व इससे जुड़े विवाद पर गया तो मै विचलित हो गया ,कुछ कहने व लिखने को ! {हमारे देश मै अनेक ऐसे यूरो -इंडियन है जो स्वयम की प्रसिद्धी की चाह मै किसी हद तक गिर सकते है ये लोग सामाजिक कार्यो का मुखोटा ओड़े है और इनके परन्तु इनके कृत्य देश की संस्कृति व पहचान के लिए घातक है जिनमे दीपा मेहता ,अरुंधती रॉय,मकबूल फिजा हुस्सेन ,नंदिता दास ,सबाना आजमी जेसे नाम मुखर है क्योकि यूरोप मै इक ऐसा वर्ग विकसित हुआ है जो भारत को विश्व पटल पर दरिद्र व भ्रष्ट देश दिखाना चाहता है इसीलिए यह वर्ग इन यूरो -इंडियन की घिनोनी मानसिकता को मेगसेसे व बुकर पुरस्कार देकर पोषित करता है } मै इस फिल्म को भी इसी श्रेणी मै देखता हू !नहीं तो क्या आज तक क्या ए.आर.रहमान ने इससे अच्छा संगीत नहीं दिया ?फिर क्यों उन्हें इसी फिल्म के माध्यम से ये अवार्ड मिला ?दरअसल यह अवार्ड रहमान के संगीत को नहीं बल्कि ,भारत का दरिद्र रूप दिखाने वाली फिल्म के संगीतकार को इनाम मै मिला है ,और हम खुश है की रहमान ने इतिहास रच दिया !अब जरा फिल्म के नाम पर गोर करे "स्लमडॉग मिलिनियर "अर्थात "करोड़पति गरीब कुत्ता " इसे सुनकार किसी भी भारतीय का स्वाभिमान छलनी हो जायेगा !क्या यह भारतीयों को सीधे-सीधे गाली नहीं ? क्या यूरोप मै कही कोई खामी नहीं है ,कोई भ्रष्टाचार नहीं है फिर क्यों हमारा ही मजाक बनाया जाता है !इस सब के पीछे हमारे देश वासियों की स्वभिमान शून्यता का प्रतीक है !यदि आप टेक्नालोजी को छोड़ दे तो अन्य किसी मामले मै हम हालीवुड से पीछे नहीं है ,परन्तु जाने क्यों हमने आस्कर को ही श्रेष्टता का प्रमाण मान लिया है कला और साहित्य मै जितना स्रजन हमने किया है उतना तुलनात्मक रूप मै शायद ही किसी ने किया हो !लेकिन हम है की मेगसेसे और बुकर जेसे पुरस्कारों की और टकटकी लगाये रहते है व इनको ही अपनी सार्थकता का प्रमाण मानते हैहमारे बुद्धिजीवी किस कदर पश्चिम पर आसक्त है इसका प्रमाण है की बिस्मार्क पश्चिम का सरदार पटेल नहीं है ,न ही नेपोलियन यूरोप का समुद्रगुप्त ही है, लेकिन कालिदास भारत का शेक्स्पीअर है ! आज इस मानसिकता के विरुद्ध सजग व सक्रीय होने की आवश्यकता है ,नहीं तो हमारा अस्तित्व खतरे मै पड़ते देर न लगेगी !!!!!!!!!!

6 comments:

hindi-nikash.blogspot.com said...

आपका ब्लॉग देखा बहुत अच्छा लगा.... मेरी कामना है की आपके शब्दों को नई ऊर्जा, नई शक्ति और व्यापक अर्थ मिलें जिससे वे जन-साधारण के सरोकारों का सार्थक प्रतिबिम्बन कर सकें.

कभी समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर पधारें-
http://www.hindi-nikash.blogspot.com

सादर-
आनंदकृष्ण, जबलपुर.

इस्लामिक वेबदुनिया said...

सुनील भाई
आपके बारे में जानकर अच्छा लगा

राम त्यागी said...

I agree that western feel happy to make fun of us, but same time we need to introspect us that we are a fast developing nation but our poors are becoming more poor, netas are eating the country like anything. jiase kabir ne kahaa hai ki "nindak niyare raakhiye ...."
so dont get upset from critics, but try to make sure that on ur level you are trying best to make ur country better, we have to do a lot, our country is really in bad shape....

अभिषेक मिश्र said...

Sacchai ko khud bhi swikarein to dusron ko kishar uchalne ka mauka nahin milega. Swagat.


(gandhivichar.blogspot.com)

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

naamkaran to accha nahin hai naa.......ek acchi cheez banakar uska tuccha naam rakhne kaa kya arth hai....kya iska ye bhi matlab nahin aap bhaarat kee gandgi....bebasi.aur lachari ko bhunaanaa chaahate ho.......kya ise door karne kaa bhi upaay kisi ke paas hai.....??नामकरण तो अच्छा नहीं है ना .......एक अच्छी चीज़ बनाकर उसका टुच्चा नाम रखने का क्या अर्थ है ....क्या इसका ये भी मतलब नहीं आप भारत की गंदगी ....बेबसी .और लाचारी को भुनाना चाहते हो .......क्या इसे दूर करने का भी उपाय किसी के पास है .....??

सुनील सुयाल said...

देख भी ली स्लमडॉग !कमल हसन की पुष्पक का वो द्रश्य याद आ गया ,जिसमे वो सेन्ट छिड़क कर गिफ्ट को बस स्टैंड पर छोड़ जाता है !और फिल्म देखने के बाद, आस्कर मिलने के लिए फिल्म मै क्या अनिवार्य विशेषताए हो इस के प्रति मेरी सोच को और बल मिला है !